Wednesday, December 12, 2018

मध्य प्रदेश के नतीजे आने में आख़िर इतनी देरी क्यों हुई

बात यह थी कि स्वेच्छा से इसे चुनने वाली महिलाओं से क्या वाक़ई यह अपेक्षित था कि वे शारीरिक तौर पर वर्जिन हों.
महिलाएं अगर नन बनना चाहें तो वे उसी दिन से कुंवारेपन की शपथ लेकर नन बन सकती हैं. लेकिन 'ईश्वर की पत्नियों' से जीवन भर वर्जिन होने की अपेक्षा की जाती है.
इन दिशानिर्देशों के विवादित सेक्शन 88 के मुताबिक़, वैटिकन यह कहता है कि अपने शरीर को पूरी तरह आत्मसंयमित रखना या पवित्रता के मूल्यों का अनुकरणीय ढंग से पालन करना महत्वपूर्ण है, लेकिन यह 'कॉन्सीक्रेटेड वर्जिन' बनने की अनिवार्य और पहले से आवश्यक शर्त नहीं है.
यूएसएसीवी ने इन दिशार्निदेशों को हैरतअंगेज़ और जटिल बताया.
उन्होंने अपने बयान में लिखा कि इस पूरी परंपरा में ईश्वर की पत्नी का दर्जा हासिल करने के लिए शारीरिक और आध्यात्मिक कुंवारापन सबसे अहम है.
जेसिका कहती हैं कि काश दिशानिर्देशों में कुछ और सफ़ाई से इस बारे में लिखा गया होता. वह कहती हैं, "दिशानिर्देश कहते हैं कि महिलाएं अविवाहित होनी चाहिए और न ही पवित्रता के सार्वजनिक और घोर उल्लंघन में लिप्त होनी चाहिए."
"हो सकता है कि किसी महिला के साथ अतीत में कोई घटना हुई हो या हो सकता है कि उसका बलात्कार हुआ हो और वह वर्जिन न रही हो."
वह कहती हैं कि अंतत: यह कैथोलिक महिलाओं को इस बारे में प्रेरित करने के लिए है.
"और शायद इसकी संख्या भी इसलिए बढ़ रही है क्योंकि लोगों को ईश्वर के प्रति ऐसे उग्र समर्पण के साथ रहने की ज़रूरत है. शायद चर्च को आज इसी बात की ज़रूरत है."
बीबीसी 100 वुमन दुनिया की 100 प्रभावशाली और प्रेरक महिलाओं के बारे में है. बीबीसी हर साल इस सिरीज़ में उन महिलाओं की कहानी बयान करता है.
2018 महिलाओं के लिए एक अहम वर्ष रहा है. इस बार बीबीसी 100 वुमन में आप पढ़ेंगे उन पथ-प्रदर्शक महिलाओं की कहानियां जो अपने हौसले और जुनून से अपने आस-पड़ोस में सकारात्मक बदलाव ला रही हैं.
वसुंधरा राजे सिंधिया और रमन सिंह ने मंगलवार की शाम चुनावी नतीजे आने के बाद हार स्वीकार करते हुए इस्तीफ़े की घोषणा कर दी थी. इंतज़ार था 13 सालों से मध्य प्रदेश की सत्ता पर क़ाबिज़ शिवराज सिंह चौहान का.
मध्य प्रदेश की मतगणना 12 दिसंबर की सुबह आठ बजे तक चली. पूरी रात ऐसा लगता रहा कि कहीं बड़ा उलटफेर ना हो जाए. सवा आठ बजे स्थिति साफ़ हो गई. किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला. कांग्रेस और बीजेपी के बीच महज़ पांच सीटों का फ़र्क रहा.
ऐसा लग रहा था कि बीजेपी इतनी जल्दी हार नहीं मानेगी और सरकार बनाने की कोशिश कर सकती है. मंगलवार की रात बीजेपी के मध्य प्रदेश प्रमुख राकेश सिंह ने एक ट्वीट कर इन क़यासों को और हवा दी. राकेश सिंह ने ट्वीट किया कि किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है और बीजेपी निर्दलीय विधायकों के संपर्क में है.
लेकिन दिक़्क़त ये थी कि सारे निर्दलीय विधायकों का समर्थन मिलने के बाद भी बीजेपी बहुमत के जादुई आँकड़ों तक नहीं पहुंच पा रही थी. बीजेपी के 109 और चार निर्दलीय विधायकों को मिलाने के बाद भी संख्या 113 तक ही पहुंच पाती.
मायावती ने अपने दो विधायकों और समाजवादी पार्टी ने एक विधायक का समर्थन कांग्रेस को देने की घोषणा कर दी थी. ऐसे में शिवराज सिंह चौहान के पास कोई विकल्प नहीं बचा था.
सारे विकल्पों को देख चौहान बुधवार ग्यारह बजे दिन में मीडिया के सामने आए और कहा, ''किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है. बीजेपी को कांग्रेस से ज़्यादा वोट मिले लेकिन संख्या बल में हम पिछड़ गए. मैं संख्या बल के सामने सिर झुकाता हूं और अब मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफ़ा देने जा रहा हूं.''
शिवराज सिंह चौहान लगातार 13 सालों से ज़्यादा वक़्त तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. इतने सालों तक मध्य प्रदेश की कमान किसी और के पास नहीं रही.
इस बार भी बीजेपी को उम्मीद थी कि शिवराज सिंह चौहान का नेतृत्व कांग्रेस पर भारी पड़ेगा और बीजेपी लगातार चौथी बार सत्ता में आएगी. इस बात को लगभग सभी लोग मानते हैं कि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के क़द का कांग्रेस में कोई नेता नहीं था. इतना कुछ होने के बावजूद भी आख़िर चौहान कहां चूक गए?
ग्वालियर के वरिष्ठ पत्रकार राम विद्रोही का मानना है कि मध्य प्रदेश में यह चौहान की चूक नहीं है बल्कि यह जनादेश केंद्र सरकार की नोटबंदी और ग़लत नीतियों के ख़िलाफ़ है.
विद्रोही कहते हैं, ''नतीजे आने के बाद मैंने कई गांव वालों से बात की. किसी ने शिवराज सिंह चौहान की बुराई नहीं की. सबने चौहान की तारीफ़ की और कहा कि नोटबंदी के कारण उनका नुक़सान हुआ है. नोटबंदी से आम लोग प्रभावित हुए हैं और जीएसटी से मध्य वर्ग. शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व के कारण ही बीजेपी को कांग्रेस से भी ज़्यादा वोट मिले. हम कह सकते हैं कि यह जनादेश शिवराज के चुनाव में मोदी के ख़िलाफ़ है.''